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पटसन संबंधी जानकारी


पटसन संबंधी जानकारी
पटसन उद्योग के बारे में

उदग्म - पटसन एक घासनुमा एवं पटुआ,सन,रेशा जैसे बास्ट फाइबर वर्ग के अंतर्गत आने वाला रेशेदार प्राकृतिक पौधा है। प्राचीन समय से पारंपरिक रूप से यह रेशेदार पौधा भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी क्षेत्र में उगाया जाता है जो वर्तमान समय में पश्चिम बंगाल व बंगलादेश के तराई अंचल के रूप में जाना जाता है । पटसन एक वार्षिक नवीकरणीय पौधा है जो तिलियासिया कुल का कोरकोरस जाति से संबंधित पौधा है। आमतौर पर इस रेशेदार पौधे की दो जातियां कोरकोरस ओलिटोरियस एवं कोरकोरस कैपसुलारिस जो क्रमश: टोसा व सफेद पटसन के रूप में साधारणतया जाना जाता है एवं वाणिज्यिक पैमाने पर उगाया जाता है । मेस्टा के नाम से एक अन्य रेशेदार पौघा है जिसकी हिबिसकस केनाबिनस और हिबिसकस सबदारिफा नामक दो जातियों की खेती की जाती है ।

भारतीय वनस्पति उद्यान, शिवपुर, पश्चिम बंगाल के अधीक्षक रॉक्साबर्ग ने सन 1795 में पहली बार पटसन शब्द का प्रयोग बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर, इस्ट इंडिया कंपनी को अपने एक पत्र में किया था । भारत में पटसन का प्रथम मील सन 1855 में कोलकाता के समीप रिसड़ा में स्थापित किया गया था.


पटसन की खेती – संक्षिप्त अवलोकन

भूमि – भूमि – पटसन किसी भी मिट्टी में उग सकती है परन्तु हल्की बलुई दुमट मिट्टी इसके लिए सर्वथा उपयुक्त है।

मृदा पीएच – मृदा पीएच – पटसन की खेती के लिए 6 -7.5 मृदा पीएच आदर्श माना जाता है।

जलवायु – जलवायु – पटसन की खेती के लिए आपेक्षिक आर्द्रता 40-90% के बीच एवं तापमान 17 डिग्री सेलसियस से 41 डिग्री सेलसियस के बीच होना चाहिए एंव 1200 मी.मी. वर्षा इसकी खेती के लिए सर्वथा उचित है ।

फसल कटाई एवं सड़न प्रक्रिया – पटसन की फसल 100 –120 दिनों के अंदर कटाई के लिए तैयार हो जाती है । फसल कटाई के बाद पटसन के बंडलों को पत्तों के झडने के लिए 2-3 दिन तक खेत में रख दिया जाता है । पटसन के बंडलो के पत्तों के झड़ने के बाद तालाब में 10 सेमी की गहराई में सड़ने के लिए रख दिया जाता है । सड़न एक जैविक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से डंठल के रेशे ढीले पड़ जाते है । जीवाणु और फंगस पटसन के डंठल के कोशिकाओं को नरम कर देते है जिससे डंठल से रेशे अलग होने लगते है । 34 डिग्री सेलसियास के सामान्य तापमान में 8 से 10 दिन के अंतराल में सड़न प्रक्रिया पूरी हो जाती है ।

पटसन ग्रेडिंग - पटसन के खेती पश्चिम बंगाल, पूर्वी बिहार, असम, त्रिपुरा व आंध्रप्रदेश तक सीमित है । इन राज्यों में ज्यादातर मेस्टा पटसन की खेती होती है । कुल उपज का 80% पश्चिम बंगाल, बिहार व असम जैसे राज्यों में होता है । इन तीन राज्यों को उनके गुणवत्ता के अनुसार पांच क्षेत्रों में बांटा गया है दक्षिण बंगाल, उप उत्तरी क्षेत्र, उत्तरी असम व जंगली (पूर्णियां क्षेत्र) । उत्पति स्थल मोकम ग्रेडिंग की पुरानी प्रणाली में मुख्य मार्गदर्शक कारक था,जबकि 1975 में बीआइएस द्वारा प्रस्तावित नये ग्रेडिंग प्रणाली में टोशा और श्वेत पटसन के लिए 6 विशेषताओं को अर्थात शक्ति, दोष, जड सामग्री, रंग, महीनता एवं थोक घनत्व ध्यान में रखा गया है । कच्चे पटसन को 8 भागों में वर्गीकृत किया गया है, यह टीडी1/डबल्यु1 (सर्वोत्तम) से लेकर टीडी8/डबल्यु8 (अति निम्न कोटि) तक है । मेस्टा को दूसरी ओर (एम1 से एम6) 6 भागों में वर्गीकृत किया गया है ।


पटसन प्रसंस्करण – एक अवलोकन

1. चयन या प्रचयन – चयन शब्द का अर्थ पटसन रेशे की गुणवत्ता के अनुसार पृथक्करण एवं उपलब्धता, लागत और प्रसंस्करण के सुविधा के अनुसार विविध अंतिम उत्पाादों का बैच मिश्रण है । मील में अपनाई जाने वाली चयन प्रक्रिया संबंधित मील पर निर्भर है ।

2. मृदुकरण – इस प्रक्रिया में पटसन रीडस को स्पाइरल रूप से घुमावदार भारी रोलर्स की एक श्रृंखला के माध्यम से पारित किया जाता है और इसके साथ-साथ तेल-जल के तरल मिश्रण से गुजारा जाता है ताकि मेशी पटसन के तने व गांठ के रेशे को नरम किया जा सके, और ढीले बाहरी पदार्थ से रेशे को साफ किया जा सके। मिश्रण वाले पटसन रीडस को 1 से 3 दिन के लिए ढक कर रखा जाता है। पटसन रीडस का मृदुकरण एक जैविक रासायनिक परिघटना है । इस प्रक्रिया को एकत्रीकरण कहा जाता है । मृदुकरण का कार्य सॉफटनर मशीन या स्प्रेडर मशीन से किया जाता है, स्प्रेडर प्रक्रिया श्रमशक्ति कम लगने के कारण किफायती माना जाता है ।

3. कार्डिंग – पटसन कार्डिंग महत्वपूर्ण प्रसंस्करण चरण है । पटसन प्रसंस्करण प्रणाली में ब्रेक्रन कार्ड को केन्द्र बिंन्दु माना जाता है । लंबे मेशी पटसन के रीडस के कताई योग्य रेशों का उत्पादन इसी अवस्था में प्रारंभ होता है । यह प्रक्रिया उत्पाादक सामग्री को लंबे टुकड़ो (रिबन/टेप्सो ) में परिवर्तित करता है । यह प्रक्रिया दो चरणों में की जाती है, ब्रेकर और फिनिशर कार्ड । सैकिंग किश्म के बहुत मोटे रेशों के मामलें में कभी – कभी इंटर कार्डिंग की जाती है ।

    • • ब्रेकर कार्ड : एकत्रीकरण के बाद, कठोर छाल वाले जड. के अंश को काट दिया जाता है और उसके नरम और लचीले हिस्सों को मैनुअल रूप से कार्ड में डाला जाता है एवं इसे ही ब्रेकर कार्ड कहा जाता है,क्योंकि यह तंतु उत्पादन करने के लिए पटसन की जालीदार संरचना को तोडता है ।
    • फिनिशर कार्ड- : संतोषजनक कताई प्रर्दशन और स्वीाकार्य गुणवत्ता के धागा उत्पादन के लिए ब्रेकर कार्ड के तुलना में जहां आवश्यवक हो इस कार्डिंग प्रक्रिया का उपयोग रेशों को लंबवत रूप से फैलाने में लाया जाता है ।

4. ड्रइिंग- ड्रइिंग प्रणाली द्वारा कार्ड स्लाईवर को उन्नत रेशों के सामन्तरीकरण के माध्यम से तैयार किया जाता है जिससे कताई में ये और अधिक उपयुक्त साबित होते हैं । स्लाइवर की थिनिंग और रेशे के सामन्तरीकरण में सुधार 2 या 3 ड्रइिंग पैसेज की मदद से किया जाता है ।

5. स्पीनिंग - कताई ढाचे में, अंतिम (फिनिशर) ड्राइंग फ्रेम से वितरित स्लाइवर को अंतिम धागे को निर्दिष्ट लाइनर घनत्व के प्रारूपण द्वारा आगे बढ़ाया जाता है और अंत में धागा बनाने के लिए मोड दिया जाता है । प्रत्येक कताई के ढाचे के तीन एक साथ और आवश्यक कार्य होते है जैसे ड्राफटिंग, टिवीस्टिंग और वांइडिंग । आम तौर पर फलायर स्पिनिंग ढांचे का उपयोग जूट के कताई में किया जाता है ।

6. वाइडिंग - वाइडिंग का मुख्य ध्ये्य धागें में दोषपूर्ण स्थानों जैसे बडे़ मोटे और सलब्स को हटाना है ताकि वाइडिंग के बाद के कार्यो जैसे बुनाई के दौरान धागे के बेहतर प्रदर्शन को सुनिश्चित किया जा सके । रैप और वेफट (वस्त्र) की वाइडिंग क्रमश: स्पूल वाइडिंग और कॉप वाइडिंग मशीन में अलग से की जाती है ।

7. बिमिंग - रैप धागा पैकेज को बीमिंग मशीन के टोकरे में रखा जाता है जो रैप बीम या वीवर बीम के रूप में जाना जाता है ।

8. बुनाई - यह मूल रूप से तने और कपड़े के अंतरस्थापन की प्रक्रिया है और इसका प्रयोग करघे कपड़ा बनाने के लिए किया जाता है । पारंपरिक उत्पादों के उत्पादन के लिए जूट उद्योग में उपयोग किये जाने वाले करघे शटल करघे होते है परन्तु किमती उत्पादों के लिए एवं महीन कपड़ो के लिए शटल रहित करघों का भी उपयोग किया जाता है ।

9. परिष्करण - इसमें पूर्व करघे वाले कपड़े को अंतिम विक्रय योग्य उत्पाद में बदलने के लिए चरणों का एक क्रम होता है । जिन चरणों से गुजरता है उनके कार्यो का संक्षिप्त विवरण नीचे दिया गया है ।

    • डैंपिंग /अनवाइडिंग : कैलेंडरिंग परिचालन से पूर्व कपड़े के गठड़े को खोलना और गीला करना .
    • कैलेंडरिंग : बेहतर आवरण ओर सतह परिष्करण के उत्पादन के लिए कपड़े के घटक धागों का यांत्रिक रूप से सतहीकरण ।
    • लैपिंग (टाट बनाने के लिए प्रयुक्तं) : पैंकिंग के उपयुक्ता बनाने के लिए पटसन से बने टाट को वांछित लंबाई में मोडना ।
    • कटिंग (बोरे बनाने के लिए प्रयुक्त ) : पूर्व निर्धारित लंबाई के थैले बनाने के लिए कपड़े को रोटरी या गिलोटिन प्रकार वाले मशीन द्वारा काटा जाता है ।
    • सिलाई (बोरे बनाने के लिए प्रयुक्त ) : इसमें वांछित लंबाई बोरे के उत्पादन के लिए बोरे बनाने के कपड़े की विच्छेद लंबाई को सिलाई में शामिल किया जाता है। बोरे के कच्चे सिलाई को हेमिंग कहा जाता है एवं किनारों की सिलाई हेरकल मशीन द्वारा की जाती है ।
    • सुरक्षित सिलाई : सीम सिलाई खुल जाने की दशा में सिलाई को और मजबूत बनाने के लिए बैग निर्माण के दौरान इस प्रकार की सिलाई अतिरिक्त रूप से की जाती है।
    • ब्रैडिंग : स्क्रींन प्रिंटिग प्रणाली द्वारा बैग को मैनुअली रूप से ब्रांड किया जाता है।
    • बंडलिंग (बैग बनाने के लिए ) : बेलिंग से पूर्व 25 बैगों के बंडल बनाये जाते है।
    • बेलिंग : बेलिंग प्रेस के माध्यंम से इन बंडलों के गांठ बनाए जाते है । ए-टवील और बी-टवील के लिए 400 और 500 बैग प्रति गांठ पैक किये गए ।

पटसन खेती में बेहतर कृषि प्रणालियों को बढ़ावा देने, पटसन के विविध उत्पादों को बढ़ावा देने और उनके विपणन के लिए, पटसन मीलों के तकनीकी उन्नयन को बढावा, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत ब्लॉक स्तर पर गठित महिला स्वाबलंबी सहायता इत्या‍दि समूहों द्वारा संचालित जेडीपी कलस्टरों का प्रचार-प्रसार हेतु कदम उठाये गये है । पटसन उत्पादन और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए परियोजनाएं उदाहरणतया प्रोजेक्ट जूट-आइसीएआरइ (पटसन की उन्ऩत खेती और उन्न्त अनुवर्तन विधि ) महिला स्वाबलंबी समुहों को सहायता प्रदान करने के लिए सामान्य सुविधा केन्द्र स्कीम,पटसन मशीनरी की उत्पादकता बढ़ाने और पुराने मशीनों को नई और तकनीकी रूप से उन्नत मशीनों से बदलकर उन्हें कुशल बनाने के लिए चुनिंदा मशीनरी के अधिग्रहण के लिए पटसन क्षेत्र में प्रोत्साहन योजना लागू की जा रही है ।






जूट उत्पादक क्षेत्र